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Tuesday, August 13, 2024

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष, झंडा सत्याग्रह की वजह बनी थी हमारी संस्कारधानी


प्रथम टुडे : जिस तिरंगे को हम आज नमन कर रहे हैं और इसके लिए शीश झुकाते हैं। उस तिरंगे झंडा सत्याग्रह की वजह बनी थी हमारी यह संस्कारधानी। 

 झंडा सत्याग्रह की शुरुआत जयपुर से हुई थी

1922 में जब टाउन हॉल नगर पालिक का ऑफिस हुआ करता था अंग्रेजों के समय चौरी चौरा कांड बाद के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया गया था, जो अंग्रेजों के विरोध में चलाया जा रहा था। इस समय कांग्रेस ने समितियां का गठन किया उसमें एक समिति में पंडित जवाहरलाल नेहरू, चक्रवर्ती राजबालाचारी, विट्ठल भाई पटेल जबलपुर पहुंचे। जिनके स्वागत में जबलपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने उनके स्वागत में टाउन हॉल में तिरंगा झंडा फहरा दिया। ब्रिटिश सरकार को बिल्कुल भी ना गवार गुजरा उन्होंने आदेश दिया कि किसी भी शासकीय एवं अशासकीय भवनों पर तिरंगा झंडा फहराना प्रतिबंध कर दिया।

प्रतिबंध के आदेश को संस्कारधानी के स्वतंत्रता सेनानियों ने चुनौती के रूप में लिया

और कांग्रेस की जब दूसरी कमेटी जबलपुर में आई जिसमें डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद पूर्व राष्ट्रपति , चक्रवर्ती गोपालाचारी, देवदास गांधी, जमनालाल बजाज जबलपुर आए तो कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तपस्वी सुंदरलाल ने अपने साथियों के साथ जाकर तात्कालिक अंग्रेजी डिप्टी कलेक्टर हैमिल्टन तिरंगा फहराने की अनुमति मांगी। लेकिन डिप्टी कलेक्टर द्वारा झंडा फहराने की अनुमति तो दी लेकिन एक शर्त रख दी तिरंगा के साथ यूनियन जैक का भी झंडा फहराया जाएगा। जिसे जबलपुर के स्वतंत्रता सेनानियों ने अस्वीकार कर दिया। इसके बाद 18 मार्च 1923 को बालमुकुंद त्रिपाठी, सुभद्रा कुमारी चौहान, तपस्वी सुंदरलाल टाउन हॉल पहुंचे। यहां पहले से बनाई गई योजना के अनुसार उस्ताद प्रेमचंद जैन, परमानंद जैन और सीताराम यादव ने टाउन हॉल में दुसरी बार तिरंगा झंडा फहरा दिया। इसके बाद अंग्रेजों द्वारा लाठी चार्ज कर दिया गया। जिसमें अनेक स्वतंत्रता सेनानी घायल हो गए। जब यह बात नागपुर पहुंची उसके बाद पूरे देश में झंडा सत्याग्रह शुरू हो गया।



संकलन ममता तिवारी प्रबंध संपादक

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